उर्वशी मिश्रा, न्यूज राइटर, 02 मार्च, 2023
भारत में होली का त्योहार भिन्न- भिन्न रूपों में कई दिनों तक मनाया जाता है। इसी कड़ी में हम बात करेंगे काशी की भस्म होली की आज हम आपको बताएंगे की काशी-बनारस में रंगों वाली होली के साथ साथ चिता की भस्म होली कैसे खेली जाती है और क्या है इसका महत्व? क्यों खेली जाती है भस्म आरती? चलिए अपने इस रिपोर्ट के ज़रिए आपको बताते हैं काशी-बनारस की भस्म होली का रहस्य।
यू तो होली रंगो का त्योहार है लेकिन लेकिन अलग अलग जगहों पर भाषा और परंपरा के लिहाज से इसके रंग-रूप बदल जाते हैं। उद्देश्य तो होली ही होता है लेकिन इसके रूप बदल जाते हैं। दरअसल बनारस के काशी में भस्म यानी शमशान में चिता की राख से होली खेली जाती है। जी हां, बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की भस्म होली की परंपरा है। जिसे ‘मसाने की होली’ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस होली की शुरुआत भगवान शिव शंकर ने की थी।
पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव मां पार्वती का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे। लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर और दूसरे जीव-जंतुओं के साथ ये खुशी नहीं मना पाए थे। तब उन्होंने दूसरे दिन काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर चिता की भस्म से होली अपने गणों संग रंग-गुलाल के साथ खेली थी। जो कि ‘मसाने की होली’ के नाम से प्रसिद्ध है। तब से ही इस प्रथा की शुरुआत मानी जाती है।
धधकती चिताओं के भस्म से खेली जाती है होली
बनारस यानी काशी देश का इकलौता शहर है जहां रंग और अबीर-गुलाल के अलावा धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली खेली जाती है। चिता भस्म की होली पर बाबा विश्वनाथ के भक्त जमकर झूमते हैं। महाश्मशान मणिकर्णिका घाट हर हर महादेव के जयघोष गुंज उठता है। अलबेला नजारा होता है जब देवाधिदेव महादेव के भक्त चिता भस्म की होली खेलते हैं।
भस्म होली का रहस्य
मान्यता है कि मोक्ष की नगरी काशी में भगवान शिव स्वयं तारक मंत्र देते हैं। होली पर चिता की भस्म को अबीर और गुलाल संग शिव को अर्पण कर एक दूसरे को लगाते हैं और सुख, समृद्धि, वैभव संग शिव का आशीर्वाद पाते हैं। काशी में मसाने की होली विचित्र और अनूठी मानी जाती है और इस बात का संदेश देती है कि शिव ही अंतिम सत्य हैं।